Friday, April 13, 2012

कमीना मौसम !


मौसम बड़ा कमीना था. कई बार मुझे लगता था की मौसम भी  उसके मज़े ले रहा है. चढ़ी हुई भँव, नाक पे चश्मा और उस नाक पर टिप टिप बरसता पानी. साइड में वोह गांधी झोला लेकर रुपये के चार समोसे की खोज करना, मानना पड़ेगा सामान सस्ता कराना तो कोई तुमसे सीखता. रिक्शे वाले तुम्हे पहचानने लग गए थे, कई तो अनायास ही डर जाते थे क्यूंकि पिछली बार तुम एक हवालदार ले पहुचे थे. पर एक बात माननी पड़ेगी, गणित बहुत ज़ोरदार थी तुम्हारी, बस वोह तुम्हारा सदीओ पुराना कम्पास बॉक्स फेंकने का जी करता था. और तुम लगे रहते थे की वोह तुम्हारे लिए बहुत लकी था. कायेका लकी था, कुछ किये धरे तो नहीं, चले थे खोज करने, और मालूम नहीं कहा से झोला छाप मास्टर बन गए.


पर खैर तुमसे क्या ही कोई अरझता, अपनी अम्मा तक को तो बक्शे नहीं, ताव ताव में निकल लिए घर से. ठीक ही किया, पैसा तो कमाया जाता नहीं था तुमसे, घर में क्या मदद करते. अच्छी खासी शादी का रिश्ता लेके आया था. लड़की का बाप हलके में दारू का ठेका लगाता था. ज़मीन जायदाद का तो पूछो मत, रसूख रहता वोह अलग. एकलौती लड़की थी, पढाई में थोड़ी कच्ची थी. मालूम नहीं तुम कौन ज्ञान के चक्कर में पड़े रहे और देखने तक नहीं चले. दारू से घृणा है, लड़की का थोड़े कोई दोष था.

फिर माला का आगमन हो गया, तुम तो एकदम धन्य से दिखने लगे. लगा की साला जैसे जीवन में मालूम नहीं का पा गए. और तो और संगीत में रूचि उत्पन्न हो गई. अब इस उम्र में हेमंत कुमार के गाने कौन सुनता है. थोडा सुरूर वुरुर करते. पर हो गया, तुम तो तुमये हो. प्रिंसिपल साहब ने इतना सा कहा था, की लड़के को पास कर दो, बेचारे का साल खराब होगा, और उसके बाप का दिमाग. उसी के दम पर स्कूल की फंडिंग चल रही थी. तुम काये समझने वाले, हेमंत कुमार के गाने सुनते सुनते उस बेचारे के आवारा दिल को ठेस पंहुचा दिया. सुना आजकल लड़का तुम्हे बल्लम लिए ढूंढ रहा है और प्रिंसिपल साहब लाइन से तुम्हारी हर जगह ड्यूटी लगाए दे रहे है. चुनाव से लेकर जन-गणना तक. अच्छा ही है. शिक्षा देकर कौनसा तोप चलाये ले रहे थे. माला भी पूरी पगली थी, उससे कहा की समझाओ बबुआ को हर जगह फैलना-पसरना अच्छा नहीं है, पर वोह तो पूरी मीरा बनी हुई थी. लग रहा था की मांग के बोलेगी की, लाओ हमें विष पीना है कान्हा के लिए. हम कहे जाओ पड़ा होगा फिनायल ट्राय करके देख लो, जो बचने पाई तो बड़ी बदनामी होगी.

संस्कार का लेखा-जोखा हमसे न बताया करो तभी अच्छा है, बगल वाले पंडित जी को देखे हो ? एक ठो मिसिज बहार भी रखे है. पूरी पंडिताई अच्छी खासी जजमानी पर है. कही भी जाते है तो कोई पूछने नहीं जाता की एक ठो और कहा से पैदा किये है, सब नतमस्तक रहते है. गुरु पैसे का खेल है. या तो डंडा मारो नहीं तो दंड खाओ. तुमसे कहे रहे की थोड़ी से मुद्रा रख देते एडमीशन के टाइम पर, पर नहीं, आज मस्त इंजीनियरिंग करके ऐश करते. कल्लू लड़के को देख लो, निचजतिया रहा. अभी कामिशनरी झाड़ता है. बाप के दम नहीं रहा की ड्योढ़ी पर बैठ ले. महतारी बर्तन मांजने आती थी पर देखो अब जलवा मसकते है. और तुम बात करते हो बराबरी की, अधिकार की. इन लोंगो को खोपडिया पर चढ़ाए हो, जौन दिन सर पर मूतेंगे, तब उसी गरम मूत से तुम्हारा उद्धार होगा. चले हो नीचजतियो को पढ़ाने. अब आये हो तो चाय पी कर जाना, नहीं तो शाम को कलेवा करोगे. और सुनो माला के बारे में घर पर चर्चा करो और सब चीज़ निपटा दो, कब तक बैरागी बने बागोगे ? 

फिर से बरसात होने लगी, और साला छतरी की तीली भी टूटी है, और वोह देखो बीच में कोई पड़ा हुआ है. लगता है कोई कसके लतिया गया है. अरे माला काहे रो रही है? अब्बे हटोगे सब लोग? अरे मास्टर यह तो तुम्हारा कपार खुल गया है, मानते नहीं और हर दीवार से चल देते हो मशक्कत करने. चलो जल्दी अस्पताल. 

अब सब ठीक हो गया है, बल्लम का प्रसाद पाकर दिमाग कुछ तो हिला होगा, शायद खुल भी गया हो. पर माला ना बंद करेगी आज रोना. हम ही फीनाइल घुटकी में दबवा देंगे.

तुम यार कैसे मास्टर हो, कचराई के बाद भी मुस्करा रहे हो, और लो फिर से पानी, साला मौसम बड़ा कमीना है.

PS: Please ignore the typos. Image courtesy http://www.vinylwallart.com/images/rain_cloud.jpg