Tuesday, September 18, 2007

बस..........

रात के साए में,
अंधेरों कि गहराई में,
बस.....

फिर लालिमा छाई,
पर यहा क्यों घटायें आई,
बस.......

हमेशा कि तन्हाई,
मेरी या तेरी रुसवाई,
बस.........

समुन्दर कि गहराई,
बादलों कि उचाई,
बस.........

नशे में मगरूर,
क्या तेरा क्या मेरा कसूर,
बस..........

बस एक बार और प्याला दे दो,
आख़िरी बार इस विष को पीने दो