सोचने का अंत नहीं, इसलिए तो बंद है.
मन कपाल, फूटते नहीं, इसलिए तो मंद है.
जो मन समझ सका तो क्या ? वोह तन को पसंद नहीं.
हार हार, हर बार, कही इसलिए तो मंद नहीं ?
युद्ध का अनाद है, यह, शिखर पे बसा नहीं,
पातळ समेटे हुए, विदुर बना ना कही.
समंद समेटे सका, इसलिए तो बंद नहीं ?
हार हार, हर बार, कही इसलिए तो मंद नहीं ?
जो ना पुछा, वोह कहा, जो ना कहा, वोह ना रुका,
द्वन्द्ध में फंसे हुए, ढेरो धुंध है कही,
अंत निकट आ गया, इसलिए तो बंद नहीं ?
हार हार, हर बार, कही इसलिए तो मंद नहीं ?
मस्त राग अलापते, नींद में है खो गए,
स्वप्न दिस्वपन बनें, खो गए है कही,
मन निरंकार नहीं, अब अंत निकट है कही,
हार हार, हर बार, अब अंत है तो, है सही.
अंत है तो, है सही.
चाह नहीं मन की, अंत तो है, हो गया.
कम नहीं, रण सही, अब तो ख़तम हो गया.
अभिलाषा तो पूर्ण हुई, सताओ और मुझको नहीं,
हार हार, हर बार, क्यूंकि मैं संत नहीं,
क्यूंकि मैं संत नहीं.
Image Courtesy : http://swapnilnayakphotography.wordpress.com/2009/05/
मन कपाल, फूटते नहीं, इसलिए तो मंद है.
जो मन समझ सका तो क्या ? वोह तन को पसंद नहीं.
हार हार, हर बार, कही इसलिए तो मंद नहीं ?
युद्ध का अनाद है, यह, शिखर पे बसा नहीं,
पातळ समेटे हुए, विदुर बना ना कही.
समंद समेटे सका, इसलिए तो बंद नहीं ?
हार हार, हर बार, कही इसलिए तो मंद नहीं ?
जो ना पुछा, वोह कहा, जो ना कहा, वोह ना रुका,
द्वन्द्ध में फंसे हुए, ढेरो धुंध है कही,
अंत निकट आ गया, इसलिए तो बंद नहीं ?
हार हार, हर बार, कही इसलिए तो मंद नहीं ?
मस्त राग अलापते, नींद में है खो गए,
स्वप्न दिस्वपन बनें, खो गए है कही,
मन निरंकार नहीं, अब अंत निकट है कही,
हार हार, हर बार, अब अंत है तो, है सही.
अंत है तो, है सही.
चाह नहीं मन की, अंत तो है, हो गया.
कम नहीं, रण सही, अब तो ख़तम हो गया.
अभिलाषा तो पूर्ण हुई, सताओ और मुझको नहीं,
हार हार, हर बार, क्यूंकि मैं संत नहीं,
क्यूंकि मैं संत नहीं.
Image Courtesy : http://swapnilnayakphotography.wordpress.com/2009/05/
16 comments:
Awesome !!
@Sharda : Thanks Bro.
Ahem! Ahem! PL has done something to you seriously :P
Ant hai to hai sahi.. wah kya kaha hai... bahut sahi bahut sahi...
commendable job! "aap sant nahi" yes i know who said you are ??
require some proof reading though kafi jagah matra truti hain.
छूट गया कुछ कहीं अधूरा
कहीं कहीं से फिर भी पूरा
मूल मिल गया, शाखा-पत्ते
रह गए थोड़े, फिर भी भूरा
भूरा ये प्रयास तुम्हारा
लगा मुझे तो बड़ा ही न्यारा
Too Good....very well written sir jee :)
वाह वाह!
अद्वितीय अर्थात उत्तम रचना !
@Bhanu : PL ? Pandey League ?
@Amritash : Dhanyawaad sarkar.
@Rupak: jab dekho saale tritiya dekhte rehte ho. Sant to saale sirf paaji hai apne. Waise Dhanyawaad.
@Sharma ji : Bahut bahut hai dhanyawaad, avashya hoga shankhnaad.
@Soumya : Dhanyawaad !
@Richa : Utkrisht bhi daal sakti thi saath mein ;-P
Wah Dost wah....Dil khus kar diye...though, will hv to buy a hindi- Eng dictionary....Keep it up....n remember.....When in Doubt..F***!!!!!!!!!
Good to you back with poetry again!! Very Good one.
@Parru : Haan mere sher..mujhe pakka maloom hai hawa nahi lagi saale tereko.
@WideAwake : Hey thanks for going through it, but you know kisi ke samajh mein nahi aa rahi hai yeh kavita, dubara padhne pe mere ko bhi badi confusing lag rahi hai ;-)
Mujhe samajh aayee hai. (Though very pure Hindi, jo kuch kuch Hindi speaking logon ke bhi samajh nahi aayee---- !!!TRIUMPH!!!) Par mujhe parhke laga tu thora depressed hai.... :-)
Very deep thought... par nirasha ki
I think poetry reflects your mind. Kisi chiz ko leke perplexed hai kya? Shayad undecided.. ?? :-)
@Wide : ha ha ha, arre yeh mera permanent state of mind hai, so nothing new. ;-)
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